जब सब कुछ टूट जाता है
कविता उस एक प्रेमी का जवाब है उस प्रेमिका को जो विरह के बाद फिर से मिलना चाहती है प्रेमी से बस एक बार देखने के लिए
श्रीनिधि मिश्र
3/24/20231 min read
जुड सकता है कुछ-कुछ टूटने क बाद
बस एक बार ठीक से देख लेना
एक बार दिल से कह देना
की बीत गयी वह स्याह रात
आ गयी है सुबह
अब नहीं है जुरुरत नकली रोशनी की ,
और मै मान लूँगा तुम सच कह रही थी ,
मै मान लूँगा वह वियोग एक बुरा ख्वाब था,
तुम बैठना मेरे कंधे पे अपना सर रख कर ,
और यूँ जुड़ जाएगा वह जो कुछ टूटा है ।।
यूँ तो वह जुड़ भी जाएगा लेकिन
मै नहीं भूलुंगा ,
अकेलेपन मे बहाये अपने अश्रुओं को,
उन काली स्याह रातो को ,
उस सीएफेल की लाइट मे भी मै पहचान सकता था की अंधेरा कितना गहरा है,
उस अंधेरे के निर्बाध संसार मे बस एक ही भाव था
अंदर भी और बाहर भी –गहरे सन्नाटे का भाव ,
कई एहसासों के बीच जो कशमकश थी
तुझे माँग लूँ या छीन लूँ जैसी
मन मानना नहीं चाहता था और दिमाग हारना नहीं
बेबसी और मजबूरी का वह दौर
मै नहीं भूलुंगा॥
मै नहीं भूलुंगा
क्यूंकी सब वो जो कुछ टूटा हुआ जुड़ गया
दुबारा टूटेगा तो इस बार सब कुछ टूट जाएगा।
सब कुछ टूटा हुआ नहीं जुड़ता,
किसी कोमल हाथो के माथे का पसीना पोछने से
किसी के कंधे पर सर रख देने
किसी के कोमल चुंबन से या प्रेमपूरित आलिंगन से
जब सब कुछ टूट जाता है वह कभी नहीं जुड़ता ॥
श्रीनिधि